कभी ज्ञान विज्ञान से विश्व गुरु बना भारत आज विश्व पिच्छलग्गू बन चुका हैहनुमान की भांति जब निज विस्मृति (lostMemory) से बाहर आयेगा, वैदिक ज्ञान की आभा (glory) पहचानेगा,चमकाएगा तब तक केवल नारे से भ्रमायेगा स्वर्ण युग की उस शक्ति को पहचान देगा ज्ञानविज्ञान दर्पण तिलक (Join us to Build StrongBHARAT निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण मीडिया समूह YDMS 09911111611, 9999777358.

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Thursday, November 29, 2012

ज्ञान विज्ञान की जन्मभूमि व तेज भारत में था

ज्ञान विज्ञान की जन्मभूमि व तेज भारत में था

 भा रत और भारत के लोगों के बारे में एक धारणा विश्व में बनाई गई कि भारत जादू-टोना और अंधविश्वासों का देश है। अज्ञानियों का राष्ट्र है। भारत के निवासियों की कोई वैज्ञानिक दृष्टि नहीं रही, न ही विज्ञान के क्षेत्र में कोई योगदान है। 
भारत के संदर्भ में यह प्रचार  (BrainWash) विचार रिवर्तन लंबे समय से आज तक चला आ रहा है। रिणाम यह हुआ कि अधिकतर भारतवासियों के अंतर्मन में यह बात अच्छे से बैठ गई कि विज्ञान यूरोप की देन है। विज्ञान का सूर्य पश्चिम में ही उगा था, उसी के प्रकाश से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान है। 
इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज हम हर बात में पश्चिम के पिछलग्गू हो गए हैं क्योंकि हम पश्चिम की सोच को वैज्ञानिक सम्मत मानते हैं, भारत की नहीं। पश्चिम ने जो सोचा है, अपनाया है वह मानव जाति के लिए उचित ही होगा। इसलिए हमें भी उसका अनुकरण करना चाहिए। 
भारत में योग पश्चिम से योगा होकर आया, तो जमकर अपनाया गया। आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को हटाकर एलोपैथी के व्यवसाय को अपनाया लोगों की आंखें तब खुली, जब आयुर्वेद पश्चिम से हर्बल का लेवल लगाकर आया। भारत में विज्ञान को लेकर जो वातावरण निर्मित हुआ उसके लिए हमारे देश के कर्णधार व नकी नीतियाँ ही जिम्मेदार हैं। जिन्होंने भी शोध और विमर्श के बाद भी, भारतीय शिक्षा व्यवस्था में, भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा को शामिल नहीं किया। भारत के छात्रों का क्या दोष, जब उन्हें पढ़ाया ही नहीं जाएगा; तो उन्हें कहां से मालूम चलेगा कि भारत में विज्ञान का स्तर कितना उन्नत था। 
    विज्ञान और तकनीकी मात्र पश्चिम की देन है या भारत में भी इसकी कोई परंपरा थी? भारत में किन-किन क्षेत्रों में वैज्ञानिक विकास हुआ था? विज्ञान और तकनीकी के अंतिम उद्देश्य को लेकर क्या भारत में कोई विज्ञानदृष्टि थी? और यदि थी तो आज की विज्ञानदृष्टि से उसकी विशेषता क्या थी? आज विश्व के सामने विज्ञान एवं तकनीक के विकास के साथ जो समस्याएं खड़ी हैं; उनका समाधान क्या भारतीय विज्ञान दृष्टि में है? ऊपर के पैरे को पढ़कर निश्चित तौर पर हर किसी के मन में यही प्रश्न हिलोरे मारेंगे तो इनके उत्तर के लिए 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' पुस्तक पढऩी चाहिए। 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक सुरेश सोनी की इस पुस्तक में भी प्रश्न के उत्तर   निहित हैं। पुस्तक में कुल इक्कीस अध्याय हैं। धातु विज्ञान, विमान विद्या, गणित, काल गणना, खगोल विज्ञान, रसायन शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, प्राणि शास्त्र, कृषि विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, ध्वनि और वाणी विज्ञान, लिपि विज्ञान सहित विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भारत का क्या योगदान रहा; इसकी विस्तृत चर्चा, प्रमाण सहित पुस्तक में की गई है। यही नहीं, यह भी स्पष्ट किया गया है कि विज्ञान को लेकर पश्चिम और भारतीय धारणा में कितना अंतर है। जहां पश्चिम की धारणा उपभोग की है, जिसके नतीजे आगे चलकर विध्वंसक के रूप में सामने आते हैं। वहीं भारतीय धारणा लोक कल्याण की है। 
सुरेश सोनी मनोगत में लिखते हैं कि आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय की 'हिन्दू केमेस्ट्री', ब्रजेन्द्रनाथ सील की 'दी पॉजेटिव सायन्स ऑफ एन्शीयन्ट हिन्दूज', राव साहब वझे की 'हिन्दी शिल्प मात्र' और धर्मपालजी की 'इण्डियन सायन्स एण्ड टेकनोलॉजी इन दी एटीन्थ सेंचुरी' में भारत में विज्ञान व तकनीकी परंपराओं को प्रमाणों के साथ उद्घाटित किया गया है। वर्तमान में संस्कृत भारती ने संस्कृत में विज्ञान और वनस्पति विज्ञान, भौतिकी, धातुकर्म, मशीनों, रसायन शास्त्र आदि विषयों पर कई पुस्तकें निकालकर इस विषय को आगे बढ़ाया। बेंगलूरु के एमपी राव ने विमानशास्त्र व वाराणसी के पीजी डोंगरे ने अंशबोधिनी पर विशेष रूप से प्रयोग किए। डॉ. मुरली मनोहर जोशी के लेखों, व्याख्यानों में प्राचीन भारतीय विज्ञान परंपरा को प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया गया है।
    भारत में विज्ञान की क्या दशा और दिशा थी, उसको समझने के लिए आज भी वे ग्रंथ उपलब्ध हैं, जिनकी रचना के लिए वैज्ञानिक ऋषियों ने अपना जीवन खपया। वर्तमान में आवश्यकता है कि उनका अध्ययन हो, विश्लेषण हो और प्रयोग किए जाएं। जबकि कई विद्याएं जानने वालों के साथ ही लुप्त हो गईं, क्योंकि हमारे यहां मान्यता रही कि अनधिकारी के हाथ में विद्या नहीं जानी चाहिए। विज्ञान के संबंध में अनेक ग्रंथ थे, जिनमें से कई आज लुप्त हो गए हैं। जबकि आज भी लाखों पांडुलिपियां बिखरी पड़ी हैं। भृगु, वशिष्ठ, भारद्वाज, आत्रि, गर्ग, शौनक, शुक्र, नारद, चाक्रायण, धुंडीनाथ, नंदीश, काश्यप, अगस्त्य, परशुराम, द्रोण, दीर्घतमस, कणाद, चरक, धनंवतरी, सुश्रुत पाणिनि और पतंजलि आदि ऐसे नाम हैं; जिन्होंने विमान विद्या, नक्षत्र विज्ञान, रसायन विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र रचना, जहाज निर्माण और जीवन के सभी क्षेत्रों में काम किया। अगस्त्य ऋषि की संहिता के उपलब्ध कुछ पन्नों को अध्ययन कर नागपुर के संस्कृत के विद्वान डॉ. एससी सहस्त्रबुद्धे को मालूम हुआ कि उन पन्नों पर इलेक्ट्रिक सेल बनाने की विधि थी। महर्षि भरद्वाज रचित विमान शास्त्र में अनेक यंत्रों का वर्णन है। नासा में काम कर रहे वैज्ञानिक ने सन् १९७३ में इस शास्त्र को भारत से मंगाया था। इतना ही नहीं, राजा भोज के समरांगण सूत्रधार का 31वें अध्याय में अनेक यंत्रों का वर्णन है। लकड़ी के वायुयान, यांत्रिक दरबान और सिपाही (रोबोट की तरह)। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में चिकित्सा की उन्नत पद्धितियों का विस्तार से वर्णन है। यहां तक कि सुश्रुत ने तो आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन किया है। सृष्टि का रहस्य जानने के लिए आज जो महाप्रयोग चल रहा है, उसकी नींव भी भारतीय वैज्ञानिक ने रखी थी। सत्येन्द्रनाथ बोस के फोटोन कणों के व्यवहार पर गणितीय व्याख्या के आधार पर, ऐसे कणों को बोसोन नाम दिया गया है। 
    भारत में सदैव से विज्ञान की धारा बहती रही है। बीच में कुछ बाह्य आक्रमणों के कारण कुछ गड़बड़ अवश्य हुई लेकिन यह धारा अवरुद्ध नहीं हुई। 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' एक ऐसी पुस्तक है, जो भारत के युवाओं को अवश्य पढऩी चाहिए।

पुस्तक : भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा
मूल्य : ६० रुपए
लेखक : सुरेश सोनी
प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन
१७, दीनदयाल परिसर, ई/२ महावीर नगर,
भोपाल-४६२०१६, दूरभाष - (०७५५) २४६६८६५
कभी ज्ञान विज्ञान से विश्वगुरु भारत की, स्वर्ण युग की उस शक्ति को
पहचान देगा; ज्ञान -विज्ञान दर्पण | आओ, मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Tuesday, November 27, 2012

नानक देव के प्रकाश दिवस पर संकल्प लें:

अखिल विश्व में फैले सम्पूर्ण हिन्दू समाज के आप सभी को सपरिवार, युगदर्पण परिवार की ओर से प्रकाश दिवस की बधाई व ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।
नानक देव के प्रकाश दिवस पर आइयें, इस के लिये संकल्प लें: भ्रम के जाल को तोड़, अज्ञान के अंधकार को मिटा कर, ज्ञान का प्रकाश फेलाएं। आइये, शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।
यह प्रकाश दिवस भारतीय जीवन से आतंकवाद, अवसरवाद, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि की अमावस में, सत्य का दीपक जला कर धर्म व सत्य का प्रकाश फैलाये तथा भारत को सोने की चिड़िया का खोया वैभव, पुन:प्राप्त हो !
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है -इस देश को लुटने से बचाने तथा बिकाऊ मेकालेवादी, मीडिया का एक मात्र सार्थक, व्यापक, विकल्प -राष्ट्र वादी मीडिया |अँधेरे के साम्राज्य से बाहर का एक मार्ग...remain connected to -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. तिलक रेलन 9911111611 ... yugdarpan.com
प्रारंभिक जीवन
गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल 1,469 लाहौर के निकट राय भोई की तलवंडी (अब पाकिस्तान में, ननकाना साहिब कहा जाता है,) में हुआ था। [2] यह अब गुरु नानक देव के प्रकाश दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज [3],  उनका जन्मस्थान गुरुद्वारा जनमस्थान नाम से चिह्नित है। उनके पिता, कल्याण चंद दास बेदी लोकप्रिय नाम, कालू मेहता [4], तलवंडी के गांव राय बुलार भट्टी [5] में, उस क्षेत्र के एक मुस्लिम मकान मालिक के द्वारा फसल राजस्व के लिए एक पटवारी (एकाउंटेंट) नियोजित किया गया था। नानक की माता का नाम तृप्ता था। उनकी एक बड़ी बहन, बीबी नानकी, जो एक आध्यात्मिक व्यक्ति बन कर उभरी । 
गुरुद्वारा ननकाना साहिब

नानकी से जय राम, लाहौर के अंतिम गवर्नर दौलत खान लोदी, के स्टुअर्ड (मोदी) ने शादी कर ली और सुल्तानपुर, अपने शहर के लिए चला गया। नानक बड़ी बहन के साथ संलग्न और उसके पति के साथ रहने के लिए सुल्तानपुर आ गया। नानक को दौलत खान के साथ भी काम मिल गया, जब वह लगभग 16 वर्ष का था। यह नानक के जीवन का एक प्रारंभिक समय था। पुरातन मान्यता प्राप्त (जीवन खाते) जनम सखी के अनुसार और अपने भजन में मान्य कई संकेतों में, नानक ने सबसे अधिक संभावना इस समय में प्राप्त की। [6]
उनके जीवन पर टीकाओं के विवरण के अनुसार, एक युवा उम्र से की जागरूकता को, खिलते देखा गया । पांच वर्ष की उम्र में, नानक ने आध्यात्म के विषयों में रूची दर्शा है।  सात वर्ष की उम्र में पिता, कालू मेहता ने, प्रथा के अनुसार उसे अपने गांव के स्कूल में दाखिल कराया था। [7] उल्लेखनीय है कि गुरु नानक को वर्णमाला के पहले अक्षर में निहित प्रतीकों का वर्णन करके अपने शिक्षक को चकित करने वाले एक बच्चे के रूप में याद करते है। फारसी या अरबी विद्या में एक लगभग सीधे (स्ट्रोक) रेखा, जो 'एक' की गणितीय संस्करण जैसी या ईश्वर की एकता के रूप में बताया है।[8] नानक के बचपन के बारे में 'राय बुलार' के द्वारा उद्धत विवरण देखें। जहाँ सो रहे बच्चे के सिर पर कठोर धूप से ढाल के रूप में एक जहरीला कोबरा देखा गया व इस तरह के अजीब और अन्य चमत्कारी घटनाओं को देखा जाता रहा है।
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कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक"
कभी ज्ञान विज्ञान से विश्वगुरु भारत की, स्वर्ण युग की उस शक्ति को पहचान देगा; ज्ञान -विज्ञान दर्पण | आओ, मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Saturday, November 10, 2012

सार्थक दीपावली सन्देश

सार्थक दीपावली सन्देश:సార్థక దీపావలీ సన్దేశ  ,  ஸார்தக தீபாவலீ ஸந்தேஸ ,  ಸಾರ್ಥಕ ದೀಪಾವಲೀ ಸನ್ದೇಶ ,  സാര്ഥക ദീപാവലീ സന്ദേശ ,সার্থক দীপাবলী সন্দেশ,

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युगदर्पण का सार्थक दीपावली सन्देश: सार्थक दिपावली का अर्थ ? 
सार्थक दीपावली सन्देश...Pl. Like it, join it, share it. Tag 50 
युगदर्पण का सार्थक दीपावली सन्देश: सार्थक दिपावली का अर्थ ? 
दशहरा यदि सत्य का असत्य पर विजय का प्रतीक है, तो दीपावली प्रकाश का अन्धकार पर। आइयें, इस के लिये संकल्प लें: भ्रम के जाल को तोड़, अज्ञान के अंधकार को मिटा कर, ज्ञान का प्रकाश फेलाएं। आइये, शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।। 
यह दीपावली भारतीय जीवन से आतंकवाद, अवसरवाद, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि की अमावस में, सत्य का दीपक जला कर धर्म व सत्य का प्रकाश फैलाये तथा भारत को सोने की चिड़िया का खोया वैभव, पुन:प्राप्त हो! अखिल विश्व में फैले सम्पूर्ण हिन्दू समाज के आप सभी को सपरिवार, युगदर्पण परिवार की ओर से दीपावली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं। 
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है -इस देश को लुटने से बचाने तथा बिकाऊ मेकालेवादी, मीडिया का एक मात्र सार्थक, व्यापक, विकल्प -राष्ट्र वादी मीडिया |अँधेरे के साम्राज्य से बाहर का एक मार्ग...remain connected to -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. तिलक रेलन 9911111611 ... yugdarpan.com

दशहरा यदि सत्य का असत्य पर विजय का प्रतीक है, तो दीपावली प्रकाश का अन्धकार पर। आइयें, इस के लिये संकल्प लें: भ्रम के जाल को तोड़, अज्ञान के अंधकार को मिटा कर, ज्ञान का प्रकाश फेलाएं। आइये, शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।
यह दीपावली भारतीय जीवन से आतंकवाद, अवसरवाद, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि की अमावस में, सत्य का दीपक जला कर धर्म व सत्य का प्रकाश फैलाये तथा भारत को सोने की चिड़िया का खोया वैभव, पुन:प्राप्त हो! अखिल विश्व में फैले सम्पूर्ण हिन्दू समाज के आप सभी को सपरिवार, युगदर्पण परिवार की ओर से दीपावली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है -इस देश को लुटने से बचाने तथा बिकाऊ मेकालेवादी, मीडिया का एक मात्र सार्थक, व्यापक, विकल्प -राष्ट्र वादी मीडिया |अँधेरे के साम्राज्य से बाहर का एक मार्ग...remain connected to -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. तिलक रेलन 9911111611 ... yugdarpan.com
कभी ज्ञान विज्ञान से विश्वगुरु भारत की, स्वर्ण युग की उस शक्ति को पहचान देगा; ज्ञान -विज्ञान दर्पण | आओ, मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Tuesday, November 6, 2012

युगदर्पण के 50 हजारी होने पर

युगदर्पण के 50 हजारी होने पर आप सभी को हार्दिक बधाई व धन्यवाद। युग दर्पण ब्लाग पर बने, हमारे ब्लाग को 49 देशों के 3640, तथा राष्ट्र दर्पण पर 33 देशों के 1693, आप लोगों ने 4 नव.11 प्रथम 1 1/2 वर्षों में 10 हज़ार बार खोला व हमें 10 हजारी बनाया था। अब 4 नव.12 तक केवल एक वर्ष में, 63 देशों के 6360, तथा 51 देशों के 4100+ आप लोगों ने हमें 50 हजारी कर दिया है। आप सभी केवल हार्दिक बधाई व धन्यवाद के पात्र नहीं, हमआपका हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. तिलक रेलन 9911111611 ... yugdarpan.com
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